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बिहार की राजनीति: भ्रष्टाचार के आरोप से मानहानि के नोटिस तक

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मोहम्मद आलम

बिहार की राजनीति में एक बार फिर आरोप-प्रत्यारोप की जंग तेज हो गई है। प्रशांत किशोर (पीके) ने मंत्री अशोक चौधरी पर 200 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप लगाया। इसके जवाब में अशोक चौधरी ने पीके पर 100 करोड़ रुपये की मानहानि का नोटिस भेज दिया।
यह विवाद अब सुर्खियों में है, लेकिन इसके पीछे कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं। क्या सचमुच अशोक चौधरी 100 करोड़ का मानहानि केस अदालत तक ले जाएंगे? या फिर यह सिर्फ़ राजनीतिक दबाव और प्रचार की रणनीति है?कानून के जानकार बताते हैं कि मानहानि का मुक़दमा दायर करते समय कोर्ट-फीस दावा राशि के अनुसार जमा करनी होती है। यानी अगर 100 करोड़ की मानहानि का दावा होता है तो कोर्ट-फीस लाखों रुपये में होगी। जनता के बीच फैली यह धारणा कि “10% यानी 10 करोड़ पहले कोर्ट में जमा करना पड़ेगा” सही नहीं है, लेकिन इतनी बड़ी राशि पर मुकदमा दायर करना आसान भी नहीं है। यही वजह है कि नेता अक्सर नोटिस तक ही सीमित रहते हैं और मामला अदालत तक नहीं पहुँचता।असलियत यह है कि ऐसे नोटिस राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किए जाते हैं। जनता को यह संदेश देना कि“देखो, हमने मानहानि का दावा ठोक दिया”मुख्य उद्देश्य होता है। लेकिन जब बारी कोर्ट-फीस, सबूत और लंबे मुकदमे की आती है, तो अधिकतर मामले ठंडे बस्ते में चले जाते हैं।
इस विवाद ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि बिहार की राजनीति में भ्रष्टाचार का मुद्दा और मानहानि के नोटिस केवल सुर्खियाँ बटोरने का ज़रिया बनते जा रहे हैं। शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और विकास जैसे असली सवाल पीछे छूट जाते हैं।बिहार की जनता अब यह समझ चुकी है कि आरोपों और नोटिस की राजनीति से न तो भ्रष्टाचार रुकेगा और न ही आम लोगों का जीवन बदलेगा। सवाल वही है—क्या यह लड़ाई जनता के मुद्दों के लिए होगी, या फिर नेताओं के बीच छवि बचाने की बाज़ीगरी तक सीमित रह जाएगी?

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